Maa Jagdi ki Doli
Thursday, 20 March 2014
उत्तराखंड तैं अब हौरि नि बगण दयोंला, आवा! हम अपणी “दिल्ली” यिखि बणोंला।
ज्वनि मा जु गै छौं, बुड्ये कि बि बौड़ी, पर ये पहाड़न आस अज्युं बि नि छोड़ी,
हिटा जरा उब्बु खुणी, मुरदी सांस लौटौंला, आवा! हम अपणी “दिल्ली” यिखि बणोंला।
बारह बरस ह्वै ग्येनि विकास पथ पर चलदा, ज्वान बुड्ये ग्येनि स्ये ताला खुल्दा-२,
अब बगत ऐ ग्ये, हरचीं तालि खुज्योंला, आवा! हम अपणी “दिल्ली” यिखि बणोंला।
तुम कख-कख पौन्च्याँ, पण मि यिखि रै ग्युं, तुमरि अपन्याँस से बि, भिंडी दूर व्है ग्युं,
अब, उत्तराखंडी होण मा अपणी सान चितौंला, आवा! हम अपणी “दिल्ली” यिखि बणोंला।रात गै
, बात गै, कारा एक शुरुवात नै, जु ह्वै ग्ये, फुंड ढोला, अब अग्नै कि छ्वीं लगौन्ला।। देरादूण, गैरसैण,
तु गढ़वली, मि कुमैंण, ‘बा’ अर ‘ख’ मा माटु डाला, उत्तराखंडे खैरि याँन नि मिटेंण, मिठी आमू दाणी बाँटा,
नि बाँटा कणा कर्येलों का झोंला, अब अग्नै …. जु जख च, वेकु उत्तराखंड वुखि च,
आजै दशा बदला, अज्युं बि क्वि भै-बंद भुकि च, निवासी-प्रवासि कि बथ छोड़ा,
सबि मिलि कि जोर अज्मौन्ला,
By Ramlal panchola
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment